मंगलवार, 27 जनवरी 2015

वैदेही २

हम लोग अब इस बच्ची को लेकर बैठे थे। बच्ची का रंग सावंला था ,आँखे बड़ी बड़ी थी। उसने अच्छे कपडे पहन रखे थे. उससे यह महसूस होता था कि किसी मध्यम वर्गीय परिवार से जुडी है. बच्ची इतनी छोटी थी कि अनाथालय में छोड़ना नामुमकिन था।  हम लोग विचार विमर्श कर रहे थे तभी आश्रम में रहने वाली कौशल्या आई ,उसने बच्ची को वहीं छोड़ने का आग्रह किया।
 कौशल्या एक ऐसी दुखी महिला थी जिसके पति ने दो वर्ष पूर्व उससे उसका बच्चा को छीनकर घर से बेघर कर दिया था।  वह बच्चे के लिए रो रो कर जान देने जा रही थी कि शर्मा जी ने बचा लिया और उसे शर्मा कुटी ले आये।  वह यहाँ आश्रम में दूसरी महिलाओं ,वृद्धों और अनाथ बच्चों के साथ जीवन यापन कर रही थी।
इस बच्ची को देख कर उसकी ममता जाग उठी  और वह इसे लेने को आतुर हो उठी। शर्मा जी ने उसके आँचल में बच्ची को दाल दिया और कहा ठीक है कौशल्या ये बच्ची  तुम्हारे आँचल में है लेकिन हम लोगो के संरक्षण में रहेगी।
 होली का दूसरा दिन था ,हमने बाल विशेषज्ञ डाक्टर सुधीर को बुलाया ताकि उस बच्ची का निरिक्षण परिक्षण करा जाये।  साथ ही पास के मंदिर के पुजारी को बुलाया जिससे उसका नामकरण भी हो जाये।
 डाक्टर सुधीर ने चेकअप करके बताया कि बच्ची मात्र आठ दिन की है ,और उसका वज़न ३ किलो ३०० ग्राम है।  बाकि सब सामान्य है।  पंडित जी भी आचुके थे।  उन्होंने व् अक्षर दिया नाम के लिए।  व् अक्षर सुनते ही कौशल्या बोल पड़ी इसका नाम वैदेही रखते है।  मेरी पत्नी बोली "अरे कौशल्या ,वैदेही तो कौशल्या की बहु थी और तुम इस बच्ची को बेटी बना रही हो". कौशल्या मुस्कुरा कर रह गयी।

                               क्रमशः 

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

वैदेही 1

आज होली है, सुबह से ही बच्चे रंग खेल रहे हैं|बच्चों कि ख़ुशी देखते बनती है |दौड़ दौड़ कर एक दूसरे के ऊपर रंग डाल रहे हैं| मेरे दोनों बच्चे और मेरे दोनों बच्चे और मेरे पड़ोसी शर्मा जी का बेटा सभी एक साथ रंग खेलने में मशगुल हैं|   शर्मा जी का एक अनाथालय चलाते हैं जो कि एक ऐसी इंसानियत की मिसाल है जो कहीं नहीं मिलती |मैं और मेरी पत्नी श्री दोनों इनके अनाथालय से जुड़े हुयें है|मुझे वक्त की परेशानी है किन्तु मेरे हिस्से का भी वक्त मेरी पत्नी इनके अनाथालय में देती हैं| आज हम लोगों ने मिलकर हार वर्ष की भाँति इस वर्ष भी अनाथालय में जा कर रंगों का त्यौहार मनाने की तैयारी की थी|
 हम कॉलोनी के सभी लोग रंगों के डिब्बे, मिठाइयाँ ,एवम खाने का समान लेकर अनाथालय की  ओर निकले|वास्तविकता यह है की इस अनाथालय का नाम "शर्मा कुटी" है और हम लोग इसी नाम से इसको जानते है|
 शर्मा कुटी तक हम लोग नाचते गाते रंग उड़ाते ढोल बजाते हुए पहुँचे| हम सभी लोग बहुत मस्त थे |शर्मा जी और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा हम लोगों के डाल का नेतृत्व कर रहे थे| मैं और मेरी पत्नी नाचने में मस्त थे|
 हम लोग धीरे धीरे शर्मा कुटी के नुक्कड़ पर पहुँचे |नुक्कड़ से ही शर्मा कुटी का बरामदा दिखने लगता है| शर्मा कुटी के बरामदे में भीड़ सी दिखाई दे रही थी |शर्मा जी , मैं, और सभी जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगे| अन्दर पहुँचने पर देखा कि चपरासी ह्रदय लाल एक नवजात शिशु को चादर में लपेटे हुए बैठा है| मैने मजाक किया कि अरे ह्रदय, बिना शादी के ही बच्चा लिए बैठे हो, क्या दहेज में मिला है|
ह्रदय लाल मुस्कुरा कर बोला, नहीं भईया  जी दहेज़ में नहीं मिला है,हाँ, सुबह जब मैं रोज़ कि तरह पाँच बजे उठा तो देखा कि यह बच्चा बरामदे में सो रहा है| अन्नपूर्णा एवम श्री दोनों ने आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में उठाया| बच्चे ने कपडा गन्दा कर दिया था इसलिए उसके कपडे बदलने के लिए भीतर ले गयी | फिर बाहर आ कर मेरी पत्नी ने बच्ची को मुझे देते हुए कहा कि ये तो लक्ष्मी है |
 चलो, अनाथालय में एक संख्या और बढ़ी| हम लोगों ने बाकि बच्चों को होली खेलने में व्यस्त कर दिया,और हम लोग उस बच्चे का पता करने लगे कि कहीं कोई भूल से तो उस बच्चे को नहीं छोड़ गया |
 एक घंटा पता लगाने के बाद हम लोग थक कर बैठ गए |अन्नपूर्णा सब के लिए पानी लायी|फिर सब लोगों ने मिलकर खाना खाया |मैं ,मेरी पत्नी ,शर्मा जी, और अन्नपूर्णा वहीँ रुक गए बाकी सब अपने अपने घर चले गए|


                                                                                                                              क्रमशः

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010